Essence: Sweet children, peace is the garland around your neck. It is the original religion of the self. Therefore, there is no need to wander around for peace. Simply stabilise yourself in your original religion.
Question: What method do people use to purify something? What method has the Father created?
Answer: In order to purify something, people put it in fire. When they create a yagya, they make a fire. Here, too, the Father has created a sacrificial fire of Rudra, but this is the sacrificial fire of knowledge. Everyone’s offering has to be sacrificed into this. You children sacrifice everything you have including your bodies. You have to have yoga. This is a race of yoga. Through this, you will first become the garland around the neck of Rudra and then you will be threaded in the rosary around the neck of Vishnu.
Song: Salutations to Shiva.
Essence for dharna:
1. Very little time remains. A lot of time has gone by and only a little remains. Therefore, whatever breath remains, use that in a worthwhile way in remembrance of the Father. Settle the karmic account of sins committed in the past.
2. In order to stabilise in your original religion of peace, definitely become pure. Where there is purity, there is peace. My original religion is peace. I am a child of the Father, the Ocean of Peace. Experience this.
Blessing: May you be soul conscious and full of good wishes and increase your account of accumulation through your every word.
Through words, you experience both the intention and the feeling (faith). If every word has good and elevated wishes and soul-conscious intentions, your account of accumulation increases through those words. If your words have the slightest percentage of jealousy, criticism or dislike, there is greater loss through those words. Powerful words mean words which have attainment and essence in them. If there is no essence in those words, those words go into the account of waste.
Slogan: To find a solution to every excuse and to remain constantly content is to become a jewel of contentment.
मुरली सार : ''मीठे बच्चे - शान्ति तुम्हारे गले का हार है, आत्मा का स्वधर्म है, इसलिए शान्ति के लिए भटकने की दरकार नहीं, तुम अपने स्वधर्म में स्थित हो जाओ''
प्रश्न: मनुष्य किसी भी चीज़ को शुद्ध बनाने के लिए कौन सी युक्ति रचते हैं और बाप ने कौन सी युक्ति रची है?
उत्तर: मनुष्य किसी भी चीज़ को शुद्ध बनाने के लिए उसे आग में डालते हैं। यज्ञ भी रचते हैं तो उसमें भी आग जलाते हैं। यहाँ भी बाप ने रूद्र यज्ञ रचा है लेकिन यह ज्ञान यज्ञ है, इसमें सबकी आहुति पड़नी है। तुम बच्चे देह सहित सब कुछ इसमें स्वाहा करते हो। तुम्हें योग लगाना है। योग की ही रेस है। इसी से तुम पहले रुद्र के गले का हार बनेंगे फिर विष्णु के गले की माला में पिरोये जायेंगे।
गीत:- ओम् नमो शिवाए..
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) समय कम है, बहुत गई थोड़ी रही.. इसलिए जो भी श्वांस बची है - बाप की याद में सफल करना है। पुराने पाप के हिसाब-किताब को चुक्तू करना है।
2) शान्ति स्वधर्म में स्थित होने के लिए पवित्र जरूर बनना है। जहाँ पवित्रता है वहाँ शान्ति है। मेरा स्वधर्म ही शान्ति है, मैं शान्ति के सागर बाप की सन्तान हूँ.. यह अनुभव करना है।
वरदान: हर बोल द्वारा जमा का खाता बढ़ाने वाले आत्मिक भाव और शुभ भावना सम्पन्न भव
बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती हैं। अगर हर बोल में शुभ वा श्रेष्ठ भावना, आत्मिक भाव है तो उस बोल से जमा का खाता बढ़ता है। यदि बोल में ईष्या, हषद, घृणा की भावना किसी भी परसेन्ट में समाई हुई है तो बोल द्वारा गंवाने का खाता ज्यादा होता है। समर्थ बोल का अर्थ है-जिस बोल में प्राप्ति का भाव वा सार हो। अगर बोल में सार नहीं है तो बोल व्यर्थ के खाते में चला जाता है।
स्लोगन: हर कारण का निवारण कर सदा सन्तुष्ट रहना ही सन्तुष्टमणि बनना है।
मुरली सार : ''मीठे बच्चे - शान्ति तुम्हारे गले का हार है, आत्मा का स्वधर्म है, इसलिए शान्ति के लिए भटकने की दरकार नहीं, तुम अपने स्वधर्म में स्थित हो जाओ''
प्रश्न: मनुष्य किसी भी चीज़ को शुद्ध बनाने के लिए कौन सी युक्ति रचते हैं और बाप ने कौन सी युक्ति रची है?
उत्तर: मनुष्य किसी भी चीज़ को शुद्ध बनाने के लिए उसे आग में डालते हैं। यज्ञ भी रचते हैं तो उसमें भी आग जलाते हैं। यहाँ भी बाप ने रूद्र यज्ञ रचा है लेकिन यह ज्ञान यज्ञ है, इसमें सबकी आहुति पड़नी है। तुम बच्चे देह सहित सब कुछ इसमें स्वाहा करते हो। तुम्हें योग लगाना है। योग की ही रेस है। इसी से तुम पहले रुद्र के गले का हार बनेंगे फिर विष्णु के गले की माला में पिरोये जायेंगे।
गीत:- ओम् नमो शिवाए..
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) समय कम है, बहुत गई थोड़ी रही.. इसलिए जो भी श्वांस बची है - बाप की याद में सफल करना है। पुराने पाप के हिसाब-किताब को चुक्तू करना है।
2) शान्ति स्वधर्म में स्थित होने के लिए पवित्र जरूर बनना है। जहाँ पवित्रता है वहाँ शान्ति है। मेरा स्वधर्म ही शान्ति है, मैं शान्ति के सागर बाप की सन्तान हूँ.. यह अनुभव करना है।
वरदान: हर बोल द्वारा जमा का खाता बढ़ाने वाले आत्मिक भाव और शुभ भावना सम्पन्न भव
बोल से भाव और भावना दोनों अनुभव होती हैं। अगर हर बोल में शुभ वा श्रेष्ठ भावना, आत्मिक भाव है तो उस बोल से जमा का खाता बढ़ता है। यदि बोल में ईष्या, हषद, घृणा की भावना किसी भी परसेन्ट में समाई हुई है तो बोल द्वारा गंवाने का खाता ज्यादा होता है। समर्थ बोल का अर्थ है-जिस बोल में प्राप्ति का भाव वा सार हो। अगर बोल में सार नहीं है तो बोल व्यर्थ के खाते में चला जाता है।
स्लोगन: हर कारण का निवारण कर सदा सन्तुष्ट रहना ही सन्तुष्टमणि बनना है।
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