Essence: Sweet children, you should have
the pure intoxication that, by following shrimat, you are using your
mind, body and wealth to serve Bharat in particular, and the world in
general, to make it into heaven.
Question: Even among you children, who is considered to be the most fortunate?
Answer: Those who imbibe knowledge accurately and inspire others to do the same are very, very fortunate. What fortune you children of Bharat have! God, Himself, is teaching you Raja Yoga! You children have become true mouth-born Brahmins. Your tree will continue to grow gradually. You have to do the service of changing each home into heaven.
Essence for dharna:
1. In order to become complete, remove the burden of sin by staying on the pilgrimage of remembrance. Imbibe good manners. You have to interact with everyone in a good manner. Speak very little.
2. Do not become someone with a doubtful intellect in any aspect. Use everything you have in a worthwhile way to serve Bharat to make it into heaven. Sacrifice everything completely to Shiv Baba.
Blessing: May you be loving and detached and with an attitude of unlimited disinterest finish any royal form of the consciousness of “mine”.
According to the closeness of time, it is necessary to have an attitude of unlimited disinterest in the atmosphere at the present time in a revealed form. The meaning of, “an accurate attitude of disinterest”, is to be as loving as you are detached in all your relationships and connections. Those who are loving and detached are humble instruments; they cannot have any awareness of the consciousness of “mine”. At present, the consciousness of “mine” has increased in royal forms. They would say, “This is my task alone, this is my place, I have received all these facilities according to my fortune…” So, now finish any royal form of the consciousness of “mine”.
Slogan: If you want to be free from the influence of thinking of others, have pure thoughts for the self and others.
मुरली सार : ''मीठे बच्चे - तुम्हें शुद्ध नशा होना चाहिए कि हम श्रीमत पर
अपने ही तन-मन-धन से खास भारत आम सारी दुनिया को स्वर्ग बनाने की सेवा कर
रहे हैं''
प्रश्न: तुम बच्चों में भी सबसे अधिक सौभाग्यशाली किसको कहें?
उत्तर: जो ज्ञान को अच्छी रीति धारण करते और दूसरों को भी कराते हैं, वे बहुत-बहुत सौभाग्यशाली हैं। अहो सौभाग्य तुम भारतवासी बच्चों का, जिन्हें स्वयं भगवान बैठकर राजयोग सिखला रहे हैं। तुम सच्चे-सच्चे मुख वंशावली ब्राह्मण बने हो। तुम्हारा यह झाड़ धीरे-धीरे बढ़ता जायेगा। घर-घर को स्वर्ग बनाने की सेवा तुम्हें करनी है।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) सम्पूर्ण बनने के लिए याद की यात्रा से अपने विकर्मों का बोझ उतारना है, अच्छे मैनर्स धारण करना है। सभ्यता (फज़ीलत) से व्यवहार करना है। बहुत कम बोलना है।
2) किसी भी बात में संशय बुद्धि नहीं बनना है। भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा में अपना सब कुछ सफल करना है। शिवबाबा पर पूरा-पूरा बलि चढ़ना है।
वरदान: बेहद की वैराग्य वृत्ति द्वारा मेरे-पन के रॉयल रूप को समाप्त करने वाले न्यारे-प्यारे भव
समय की समीपता प्रमाण वर्तमान समय के वायुमण्डल में बेहद का वैराग्य प्रत्यक्ष रूप में होना आवश्यक है। यथार्थ वैराग्य वृत्ति का अर्थ है-सर्व के सम्बन्ध-सम्पर्क में जितना न्यारा, उतना प्यारा। जो न्यारा-प्यारा है वह निमित्त और निर्मान है, उसमें मेरेपन का भान आ नहीं सकता। वर्तमान समय मेरापन रॉयल रूप से बढ़ गया है-कहेंगे ये मेरा ही काम है, मेरा ही स्थान है, मुझे यह सब साधन भाग्य अनुसार मिले हैं... तो अब ऐसे रायॅल रूप के मेरे पन को समाप्त करो।
स्लोगन: परचिंतन के प्रभाव से मुक्त होना है तो शुभचिंतन करो और शुभचिंतक बनो।
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