Essence: Sweet children, first have the faith that you are a soul. While living at home, consider yourself to be a child and a grandchild of Shiv Baba. It is this that takes effort.
Question: Which deep secret do you effort-making children understand very well?
Answer: You effort-makers understand that no one has as yet become 16 celestial degrees full. Everyone is making effort. No one has the power to say: I have become complete. If a soul had become complete, he would have shed his body and gone and sat in the subtle region. No one is able to return to the supreme abode until the Bridegroom comes and takes the brides back home. This is a deep secret.
Song: See your face in the mirror of your heart.
Essence for dharna:
1. Don’t have any desires for visions etc. Develop faith in the intellect and make effort. First of all, have the faith that you are a very subtle soul.
2. At times of sickness etc., stay in remembrance of the Father. Sickness is the suffering of karma; it is only through having remembrance that the soul will become pure. Become pure and go to the pure world.
Blessing: May you be a karma yogi and achieve success in every task with the concentration of the mind and intellect.
People of the world think that actions are everything, but BapDada says that actions are not separate. Both actions and yoga are together. Such a karma yogi would easily achieve success in whatever actions he performs, whether he is performing physical actions or doing something alokik. However, to have yoga in action means there is concentration of the mind and intellect and so success is bound to come. A karma yogi soul automatically receives the Father’s help.
Slogan: In order to give a return of the Father’s love, remain free from any temptation and in a stage of manmanabhav from within.
मुरली सार:- मीठे बच्चे-पहला निश्चय करो कि मैं आत्मा हूँ, प्रवृत्ति में रहते अपने को शिवबाबा का बच्चा और पौत्रा समझकर चलो, यही मेहनत है
प्रश्न: तुम सब पुरूषार्थी बच्चे किस एक गुह्य राज़ को अच्छी तरह जानते हो?
उत्तर: हम जानते हैं कि अभी तक 16 कला सम्पूर्ण कोई भी बना नहीं है, सब पुरूषार्थ कर रहे हैं। मैं सम्पूर्ण बन गया हूँ-यह कहने की ताकत किसी में भी नहीं हो सकती, क्योंकि अगर सम्पूर्ण बन जायें तो यह शरीर ही छूट जाए। शरीर छूटे तो सूक्ष्मवतन में बैठना पड़े। मूलवतन में तो कोई जा नहीं सकता, क्योंकि जब तक ब्राइडग्रूम न जाये, तब तक ब्राइड्स कैसे जा सकेंगी। यह भी गुह्य राज़ है।
गीत:- मुखड़ा देख ले प्राणी.....
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) साक्षात्कार आदि की आश न रख निश्चयबुद्धि बन पुरूषार्थ करना है। पहले-पहले निश्चय करना है कि मैं अति सूक्ष्म आत्मा हूँ।
2) बीमारी आदि में बाप की याद में रहना है। यह भी कर्मभोग है। याद से ही आत्मा पावन बनेगी। पावन बनकर पावन दुनिया में चलना है।
वरदान: मन-बुद्धि की एकाग्रता द्वारा हर कार्य में सफलता प्राप्त करने वाले कर्मयोगी भव
दुनिया वाले समझते हैं कि कर्म ही सब कुछ हैं लेकिन बापदादा कहते हैं कि कर्म अलग नहीं, कर्म और योग दोनों साथ-साथ हैं। ऐसा कर्मयोगी कैसा भी कर्म होगा उसमें सहज सफलता प्राप्त कर लेगा। चाहे स्थूल कर्म करते हो, चाहे अलौकिक करते हो। लेकिन कर्म के साथ योग है माना मन और बुद्धि की एकाग्रता है तो सफलता बंधी हुई है। कर्मयोगी आत्मा को बाप की मदद भी स्वत: मिलती है।
स्लोगन: बाप के स्नेह का रिटर्न देने के लिए अन्दर से अनासक्त व मनमनाभव रहो।
Murli Song
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.